अहिल्या
अहल्या | |
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राजा रवि वर्मा (१८४८–१९०६) द्वारा निर्मित अहिल्या का चित्र। | |
संबंध | ऋषि, पंचकन्या |
निवासस्थान | गौतम ऋषि का आश्रम |
जीवनसाथी | गौतम |
संतान | शतनन्दा |
अहल्या अथवा अहिल्या सनातन धर्म की कथाओं में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो गौतम ऋषि की पत्नी थीं। ब्राह्मणों और पुराणों में इनकी कथा छिटपुट रूप से कई जगह प्राप्त होती है और रामायण और बाद की रामकथाओं में विस्तार से इनकी कथा वर्णित है। कथाओं के अनुसार यह गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी। ब्रह्मा ने अहल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया। सभी देवता उनसे विवाह करना चाहते थे। ब्रह्मा ने एक शर्त रखी जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा वही अहल्या का वरण करेगा। इंद्र अपनी सभी चमत्कारी शक्ति द्वारा सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आये। लेकिन तभी नारद ने ब्रह्माजी को बताया की ऋषि गौतम ने इंद्र से पहले किया है। नारदजी ने ब्रह्माजी को बताया की अपने दैनिक पूजा क्रम में ऋषि गौतम ने गाय माता का परिक्रमा करते समय बछडे को जन्म दिया। वेदानुसार इस अवस्था में गाय की परिक्रमा करना त्रिलोक परिक्रमा समान होता है। इस तरह माता अहल्या की शादी अत्रि ऋषि के पुत्र ऋषि गौतम से हुआ।
इंद्र के गलती की वजह ऋषि गौतम ने माता अहिल्या शाप देकर पत्थर बना दिया। कालांतर में प्रभु श्रीराम के चरणस्पर्श द्वारा वे पुन: स्त्री बनी।
हिन्दू परम्परा में इन्हें, सृष्टि की पवित्रतम पाँच कन्याओं, पंचकन्याओं में से एक गिना जाता है और इन्हें प्रातः स्मरणीय माना जाता है। मान्यता अनुसार प्रातःकाल इन पंचकन्याओं का नाम स्मरण सभी पापों का विनाश करता है।
नाम
[संपादित करें]अहल्या शब्द दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:अ (एक निषेधवाचक उपसर्ग, नञ तत्पुरुष) और हल्या,[1] जिसका संस्कृत अर्थ हल, हल जोतने अथवा विरूपता से सम्बंधित है।[2][3] रामायण के उत्तर काण्ड में ब्रह्मा द्वारा इसका अर्थ बिना किसी असुन्दरता के बताया गया है, जहाँ ब्रह्मा इन्द्र को यह बता रहे हैं कि किस प्रकार सृष्टि की सुन्दरतम रचनाओं से तत्व लेकर उन्होंने अहल्या के अंगों में उनका समावेश करके अहल्या की रचना की।[4] ज्ञानमंडल, वाराणसी प्रकाशित आधुनिक कोश इसी अर्थ को लेकर लिखता है: "अहल्या- हल का अर्थ है कुरूप, अतः कुरूपता न होने के कारण ब्रह्मा ने इन्हें अहिल्या नाम दिया।"[5]
चूँकि, कतिपय संस्कृत शब्दकोश अहल्या का अर्थ ऐसी भूमि जिसे जोता न गया हो लिखते हैं,[1][2] बाद के लेखक इसे पुरुष समागम से जोड़कर देखते हुये, अहल्या को कुमारी अथवा अक्षता के रूप में निरूपित करते हैं। यह उस परम्परा के अनुकूल पड़ता है जिसमें यह माना गया है कि अहल्या एकानेक प्रकार से इन्द्र की लिप्सा से मुक्त और उनकी पहुँच से बाहर रही।[6][7][8] हालाँकि, रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861–1941), "अहल्या" का अभिधात्मक अर्थ "जिसे जोता न जा सके" मानते हुए उसे प्रस्तरवत् निरूपित करते हैं जिसे राम के चरणस्पर्श ने ऊर्वर बना दिया।[9] दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर भारती झावेरी भील जनजाति की मौखिक परम्परा में मौजूद रामायण के अनुसाररवीन्द्रनाथ क मत का समर्थन करती हैं और इसका अर्थ "जिसे जोता न गया हो ऐसी ज़मीन" के रूप में बताती हैं।[10]
अहिल्या की कथा
[संपादित करें]राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, "भगवन्! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते?"
विश्वामित्र जी ने बताया, "यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी के साथ यहाँ रह कर तपस्या करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया और प्रणय हेतु अपनी स्वीकृति नहीं दी। जब इन्द्र सम्भोग कर रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था। उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया। इसके बाद उन्होंने बिना विचार किए क्रोधवश अपनी पत्नी को शाप दिया कि तू हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने लगे। [11]
उद्धार
[संपादित करें]इसलिये विश्वामित्र जी ने कहा "हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो।" विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये। वहाँ तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब अहिल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किये। उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये।[12]
परवर्ती मूल्यांकन एवं पुनर्कथन
[संपादित करें]अहल्या के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक है:[13][14]
संस्कृत श्लोक
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श्लोकार्थ
अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा और मंदोदरी इनका प्रतिदिन स्मरण करना चाहिए, महा पापों का नाश करने वाली हैं।
नोट: एक अन्य रूप में इस श्लोक में सीता की जगह कुन्ती लिखा मिलता है।[6][15][16]
परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है।[14][16][17] एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ"[17] अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार महासतियाँ हैं,[18] और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं।[14] इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट करने का प्रयास किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी।[17] अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं।[6] देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। वह स्थान जहाँ अहल्या ने अपने शाप की अवधि पूर्ण की और जहाँ शापमुक्त हुईं, ग्रन्थों में अहल्या-तीर्थ के नाम से उल्लेखित और पवित्र स्थान के रूप मेंप्रतिष्ठित है। तीर्थ स्थल वह जगह या जल भंडार होता है जहाँ आमतौर पर हिन्दू तीर्थयात्री स्नान करके अपने पापों से मुक्त होने की मान्यता रखते हैं। अहल्या-तीर्थ की वास्तविक अवस्थिति के बारे में विवाद है: कुछ ग्रन्थों के मुताबिक़ यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है जबकि कुछ ग्रन्थ इसे नर्मदा के तट पर स्थित मानते हैं। दो ऐसे प्रमुख स्थान हैं जिनके अहल्या तीर्थ होने का दावा सबसे मजबूती से प्रस्तुत किया जाता है। पहला, मध्य प्रदेश के बालोद के पास नर्मदा के किनारे मौजूद अहल्येश्वर मंदिर; दूसरा बिहार के दरभंगा ज़िले में स्थित मंदिर।[19][20] अहिल्या अस्थान नामक मंदिर और अहल्या-ग्राम भी इसी ज़िले में स्थित हैं जो अहल्या को समर्पित हैं।[21] मत्स्य पुराण और कूर्म पुराण में, कामदेव के सामान रूपवान बनने और नारियों को आकर्षित करने की कामना रखने वाले पुरुषों को अहल्या तीर्थ में जाकर अहल्या की उपासना करने का मार्ग सुझाया गया है। यह उपासना कामदेव के माह, चैत्र, में करने को कहा गया है और ग्रंथों के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति अप्सराओं का सुख भोगता है।[22]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ Wilson 2008, पृ॰ 100.
- ↑ अ आ Apte 2004, पृ॰ 637.
- ↑ Monier-Williams p1293.
- ↑ Gita Press 1998, पृ॰प॰ 681–682 (Verses 7.30.22–23).
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2, प्रकाशक- ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी-1, द्वितीय संस्करण 1986, पृष्ठ- 30
- ↑ अ आ इ Bhattacharya March–April 2004, पृ॰प॰ 4–7.
- ↑ Doniger 1999, पृ॰प॰ 89, 129.
- ↑ Feller 2004, पृ॰ 146.
- ↑ Datta 2001, पृ॰ 56.
- ↑ Jhaveri 2001, पृ॰प॰ 149–52.
- ↑ Śukla, Dinakara Jośī ; anuvādaka, Triveṇī Prasāda Śukla, Prajñā (2011). Rāmāyaṇa ke pātra [रामायण के पात्र] (Saṃskaraṇa 1. संस्करण). Naī Dillī: Grantha Akādamī. पपृ॰ 100–102. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789381063064. मूल से 8 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मई 2017.
- ↑ Śukla, Dinakara Jośī ; anuvādaka, Triveṇī Prasāda Śukla, Prajñā (2011). Rāmāyaṇa ke pātra [रामायण के पात्र] (Saṃskaraṇa 1. संस्करण). Naī Dillī: Grantha Akādamī. पृ॰ 101. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789381063064. मूल से 8 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मई 2017.
- ↑ Apte 2004, पृ॰ 73.
- ↑ अ आ इ Chattopadhyaya 1982, पृ॰प॰ 13–4.
- ↑ Devika 29 October 2006, पृ॰ 52.
- ↑ अ आ Mukherjee 1999, पृ॰ 36.
- ↑ अ आ इ Dallapiccola 2002.
- ↑ Ritha Devi Spring-Summer 1977, पृ॰प॰ 25–9.
- ↑ Kapoor 2002, पृ॰ 16.
- ↑ Ganguli Vana Parva 1883–1896, chap. LXXXIV.
- ↑ Official Site of Darbhanga District 2006.
- ↑ Benton 2006, पृ॰ 79.
बाहरी कड़ियाँ
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