द्रव्य की अविनाशिता का नियम
यह नियम सर्वप्रथम फ़्रांसीसी रसायन शास्त्री आँत्वान लाव्वाज़्ये द्वारा 1789 में दिया गया है। द्रव्य की अविनाशिता का नियम अथवा द्रव्यमान संरक्षण का नियम के अनुसार किसी संवृत तंत्र का द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता है, चाहे उस तंत्र के अन्दर जो कोई भी प्रक्रिया चल रही हो। दूसरे शब्दों में, द्रव्य का न तो निर्माण सम्भव है न विनाश; केवल उसका स्वरूप बदला जा सकता है। अतः किसी बंद तंत्र में होने वाली किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारकों का कुल द्रव्यमान, उत्पादों के कुल द्रव्यमान के बराबर होना ही चाहिए।
द्रव्यमान संरक्षण की यह ऐतिहासिक अवधारणा रसायन विज्ञान, यांत्रिकी, तथा द्रवगतिकी आदि क्षेत्रों में खूब प्रयोग होती है।
सापेक्षिकता का सिद्धान्त एवं क्वांटम यांत्रिकी के आने के बाद अब यह स्थापित हो गया है कि यह नियम पूर्णतः सत्य नहीं है बल्कि लगभग सत्य (या व्यावहारिक रूप से सत्य) मानी जा सकती है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- अलबर्ट आइंस्टाइन
- सातत्य समीकरण (Equation of continuity in Fliuid dynamics)