भारत सरकार

भारत गणराज्य की सरकार
गठन26 जनवरी 1950
देशभारतीय गणराज्य
विधान शाखा
विधान पालिकासंसद
लोक सभा में कुल सदस्य543
राज्य सभा में कुल सदस्य250
सभा स्थानसंसद भवन
कार्यकारिणी शाखा
प्रधानमंत्रीभारत का प्रधानमंत्री
मुख्यालयकेंद्रीय सचिवालय
विभागकेंद्रीय मंत्रिपरिषद
भारत के केंद्र सरकार के मंत्रालय
न्यायिक शाखा
न्यायालयभारत का सर्वोच्च न्यायालय
मुख्य न्यायाधीशभारत के मुख्य न्यायाधीश
केन्द्रनई दिल्ली

भारत सरकार, जो आधिकारिक तौर से संघीय सरकार व आमतौर से केन्द्रीय सरकार के नाम से जाना जाता है, 28 राज्यों तथा 8 केन्द्र शासित प्रदेशों[1] के संघीय इकाई जो संयुक्त रूप से भारतीय गणराज्य कहलाता है, की नियंत्रक प्राधिकारी है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत सरकार नई दिल्ली, दिल्ली से कार्य करती है।

भारत के नागरिकों से संबंधित बुनियादी दीवानी और फौजदारी कानून जैसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता, आदि मुख्यतः संसद द्वारा बनाया जाता है। संघ और हरेक राज्य सरकार तीन अंगो कार्यपालिका, विधायिकान्यायपालिका के अन्तर्गत काम करती है। संघीय और राज्य सरकारों पर लागू कानूनी प्रणाली मुख्यतः अंग्रेजी साझा और वैधानिक कानून (English Common and Statutory Law) पर आधारित है। भारत कुछ अपवादों के साथ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्याय अधिकारिता को स्वीकार करता है। स्थानीय स्तर पर पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया है।[2][3]

भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका

राष्ट्रपति

भारत के राष्ट्रपति, जो कि राष्ट्र के प्रमुख हैं, की अधिकांशतः औपचारिक भूमिका है। उनके कार्यों में संविधान का अभिव्यक्तिकरण, प्रस्तावित कानूनों (विधेयक) पर अपनी सहमति देना और अध्यादेश जारी करना आदि हैं। वह भारतीय सेनाओं के मुख्य सेनापति भी हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को एक अप्रत्यक्ष मतदान विधि द्वारा ५ वर्षों के लिये चुना जाता है। प्रधानमन्त्री कार्यपालिका का प्रमुख है और कार्यपालिका की सारी शक्तियां उसी के पास होती हैं। इसका चुनाव सांसदों के द्वारा प्रत्यक्ष विधि से संसद में बहुमत प्राप्त करने पर होता है। बहुमत बने रहने की स्थिति में प्रधानमंत्री का कार्यकाल ५ वर्षों का होता है। संविधान में किसी उप-प्रधानमंत्री का प्रावधान नहीं है पर समय-समय पर इसमें फेरबदल होता रहा है।

विधायिका

विधायिका संसद को कहते हैं जिसके दो सदन हैं - उच्चसदन राज्यसभा और निम्नसदन लोकसभा। राज्यसभा में २५० सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में ५५२। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से ६ वर्षों के लिये होता है, जबकि लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, ५ वर्षों की अवधि के लिये। १८ वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर लोकसभा के सदस्यों का चुनाव कर सकते हैं।

कार्यपालिका

कार्यपालिका के तीन अंग हैं - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मंत्रिमंडल[उद्धरण चाहिए] मंत्रिमंडल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिमंडल के प्रत्येक मंत्री को संसद का सदस्य होना अनिवार्य है।[उद्धरण चाहिए] कार्यपालिका, व्यवस्थापिका से नीचे होता है[उद्धरण चाहिए]

न्यायपालिका

भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का शीर्ष सर्वोच्च न्यायालय है, जिसका प्रमुख प्रधान न्यायाधीश होता है। सर्वोच्च न्यायालय को अपने नये मामलों तथा उच्च न्यायालयों के विवादों, दोनो को देखने का अधिकार है। भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं, जिनके अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। न्यायपालिका और विधायिका के परस्पर मतभेद या विवाद का सुलह राष्ट्रपति करता है।

संघ और राज्य

भारत की शासन व्यवस्था केन्द्रीय और राज्यीय दोनो सिद्धान्तों का मिश्रण है। लोकसभा, राज्यसभा सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता, संघ लोक सेवा आयोग इत्यादि इसे एक संघीय ढांचे का रूप देते हैं[उद्धरण चाहिए] तो राज्यों के मंत्रीमंडल, स्थानीय निकायों की स्वायत्ता इत्यादि जैसे तत्त्व इसे राज्यों से बनी शासन व्यवस्था की ओर ले जाते हैं।[उद्धरण चाहिए] प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होता है जो राष्ट्रपति द्वारा ५ वर्षों के लिए नियुक्त किये जाते हैं।

संघीय कार्यपालिका

संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी आते है।[उद्धरण चाहिए] रामजवाया कपूर बनाम पंजाब राज्य वाद में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यपालिका शक्ति को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

  • 1 विधायिका न्यायपालिका के कार्यॉ को पृथक करने के पश्चात सरकार का बचा कार्य ही कार्यपालिका है।
  • 2 कार्यपालिका मॅ देश का प्रशासन, विधियॉ का पालन सरकारी नीति का निर्धारण, विधेयकॉ की तैयारी करना, कानून व्यव्स्था बनाये रखना सामाजिक आर्थिक कल्याण को बढावा देना विदेश नीति निर्धारित करना आदि आता है।[उद्धरण चाहिए]

राष्ट्रपति

राष्ट्रपति संघ का कार्यपालक अध्यक्ष है। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उसी के नाम से किये जाते है। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति राष्ट्रपति में निहित हैं इन शक्तियों/कार्यों का प्रयोग क्रियान्वन राष्ट्रपति संविधान के अनुरूप ही सीधे अथवा प्रधानमंत्री के माध्यम से करता है। वह सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी होता है, सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध / शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश का प्रथम नागरिक है तथा राज्य द्वारा जारी वरीयता क्रम में उसका सदैव प्रथम स्थान होता है। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है तथा उसकी आयु कम से कम ३५ वर्ष होनी चाहिए। राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है।

मंत्रिपरिषद

संसदीय लोकतंत्र के महत्वपूर्ण सिद्धांत 1. राज्य प्रमुख, सरकार प्रमुख न होकर मात्र संवैधानिक प्रमुख ही होता है।[उद्धरण चाहिए]
2. वास्तविक कार्यपालिका शक्ति, मंत्रिपरिषद जो कि सामूहिक रूप से संसद के निचले सदन के सामने उत्तरदायी होगा, के पास होगी।
3. मंत्रीपरिषद के सदस्य संसद के सदस्यों से लिए जाएंगे।[उद्धरण चाहिए]

परिषद का गठन

1. प्रधानमंत्री के पद पर आते ही यह परिषद गठित हो जाती है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रधानमंत्री के साथ कुछ अन्य मंत्री भी शपथ लें। केवल प्रधानमंत्री भी मंत्रिपरिषद हो सकता है।

2 मंत्रिपरिषद की सदस्य संख्या पर मौलिक संविधान में कोई रोक नहीं थी किंतु 91 वे संशोधन के द्वारा मंत्रिपरिषद की संख्या
लोकसभा के सदस्य संख्या के 15% तक सीमित कर दी गयी वहीं राज्यों में भी मंत्रीपरिषद की
संख्या विधानसभा के 15% से अधिक नहीं होगी परंतु न्यूनतम 12 मंत्री होंगे।

मंत्रियों की श्रेणियाँ

संविधान मंत्रियों की श्रेणी निर्धारित नहीं करता यह निर्धारण अंग्रेजी प्रथा के आधार पर किया गया है
कुल तीड़्न प्रकार के मंत्री माने गये हैं

  • 1. कैबिनेट मंत्री—सर्वाधिक वरिष्ठ मंत्री है उनसे ही कैबिनेट का गठन होता है मंत्रालय मिलने पर वे उसके अध्यक्ष होते है उनकी सहायता हेतु राज्य मंत्री तथा उपमंत्री होते है उन्हें कैबिनेट बैठक में बैठने का अधिकार होता है अनु 352 उन्हें मान्यता देता है

कृप्या सभी कैबिनेट मंत्रालयों, राज्य मंत्रालय की सूची पृथक से जोड दे

  • 2. राज्य मंत्री द्वितीय स्तर के मंत्री होते है सामान्यत उन्हे मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार नहीं मिलता किंतु प्रधानमंत्री चाहे तो यह कर सकता है उन्हें कैबिनेट बैठक में आने का अधिकार नहीं होता।
  • 3. उपमंत्री कनिष्ठतम मंत्री है उनका पद सृजन कैबिनेट या राज्य मंत्री को सहायता देने हेतु किया जाता है वे मंत्रालय या विभाग का स्वतंत्र प्रभार भी नहीं लेते है।
  • 4. संसदीय सचिव सत्तारूढ दल के संसद सदस्य होते है इस पद पे नियुक्त होने के पश्चात वे मंत्री गण की संसद तथा इसकी समितियॉ में कार्य करने में सहायता देते है वे प्रधान मंत्री की इच्छा से पद ग्रहण करते है वे पद गोपनीयता की शपथ भी प्रधानमंत्री के द्वारा ग्रहण करते है वास्तव में वे मंत्री परिषद के सद्स्य नहीं होते है केवल मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है।

मंत्रिमंडल

मंत्रि परिषद एक संयुक्त निकाय है जिसमॆं 1, 2, या 3 प्रकार के मंत्री होते है यह बहुत कम मिलता है चर्चा करता है या निर्णय लेता है वहीं मंत्रिमंडल में मात्र कैबिनेट प्रकार के मंत्री होते है यह समय समय पर मिलती है तथा समस्त महत्वपूर्ण निर्णय लेती है इस के द्वारा स्वीकृत निर्णय अपने आप परिषद द्वारा स्वीकृत निर्णय मान लिये जाते है यही देश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाला निकाय है।

  • सम्मिलित उत्तरदायित्व अनु 75[3] के अनुसार मंत्रिपरिषद संसद के सामने सम्मिलित रूप से उत्तरदायी है इसका लक्ष्य मंत्रिपरिषद में संगति लाना है ताकि उसमे आंतरिक रूप से विवाद पैदा ना हो।
  • व्यक्तिगत उत्तरदायित्व अनु 75[2] के अनुसार मंत्री व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति के सामने उत्तरदायी होते है[उद्धरण चाहिए] किंतु यदि प्रधानमंत्री की सलाह ना हो तो राष्ट्रपति मंत्री को पद्च्युत नहीं कर सकता है।

भारत का महान्यायवादी

भारत का महान्यायवादी संसद के किसी भी सदन का सदस्य न रहते हुए भी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है। वह भारत का नागरिक होना चाहिए। वह अपनी निजी वकालत कर सकता है, परन्तु वह भारत सरकार के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं लड़ सकता है।

प्रधानमंत्री

अनु 74 स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानम्ंत्री की उपस्तिथि आवश्यक मानता है। उसकी मृत्यु या त्यागपत्र की दशा में समस्त मंत्रिपरिषद को पद छोडना पड़ता है। वह अकेले ही मंत्रिपरिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति मंत्री गण की नियुक्ति उस की सलाह से ही करता है। मंत्री गण के विभाग का निर्धारण भी वही करता है, कैबिनेट के कार्य का निर्धारण भी वही करता है, देश के प्रशासन को निर्देश भी वही देता है, सभी नीतिगत निर्णय (विधायिका की मंजूरी से) वही लेता है, राष्ट्रपति तथा मंत्री परिषद के मध्य संपर्क सूत्र भी वही है, परिषद का प्रधान प्रवक्ता भी वही है, परिषद के नाम से लड़ी जाने वाली संसदीय बहसों का नेतृत्व करता है, संसद में परिषद के पक्ष में लड़ी जा रही किसी भी बहस में वह भाग ले सकता है, मन्त्री गण के मध्य समन्वय भी वही करता है तथा वह किसी भी मंत्रालय से कोई भी सूचना मंगवा सकता है। इन सब कारणों के चलते प्रधानमंत्री को देश का सबसे मह्त्वपूर्ण राजनैतिक व्यक्तित्व माना जाता है।

प्रधानमंत्री सरकार के प्रकार

प्रधानमंत्री सरकार संसदीय सरकार का ही प्रकार है[उद्धरण चाहिए] जिसमे प्रधानमंत्री मन्त्री परिषद का नेतृत्व करता है वह कैबिनेट की निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है वह कैबिनेट से अधिक शक्तिशाली है उसके निर्णय ही कैबिनेट के निर्णय है देश की सामान्य नीतियाँ कैबिनेट द्वारा निर्धारित नहीं होती है यह कार्य प्रधानमंत्री अपने निकट सहयोगी चाहे वो मन्त्री परिषद के सद्स्य ना हो की सहायता से करता है जैसे कि इंदिरा गाँधी अपने किचन कैबिनेट की सहायता से करती थी[उद्धरण चाहिए]

प्रधानमंत्री सरकार के लाभ

  • 1 तीव्र तथा कठोर निर्णय ले सकती है
  • 2 देश को राजनैतिक स्थाईत्व मिलता है।

इससे कुछ हानि भी है

  • 1 कैबिनेट ऐसे निर्णय लेती है जो सत्ता रूढ दल के हित में हो न कि देश के हित मे
  • 2 इस के द्वारा गैर संवैधानिक शक्ति केन्द्रों का जन्म होता है

कैबिनेट सरकार

संसदीय सरकार का ही प्रकार है इस में नीति गत निर्णय सामूहिक रूप से कैबिनेट [मंत्रि मंडल ] लेता है इस में प्रधानमंत्री कैबिनेट पे छा नहीं जाता है इस के निर्णय सामान्यत संतुलित होते है लेकिन कभी कभी वे इस तरह के होते है जो अस्पष्ट तथा साहसिक नहीं होते है। 1989 के बाद देश में प्रधानमंत्री प्रकार का नहीं बल्कि कैबिनेट प्रकार का शासन रहा है।

प्रधानमन्त्री के कार्य

१- मन्त्रीपरिषद के गठन का कार्य

२- प्रमुख शासक

३- नीति निर्माता[उद्धरण चाहिए]

४- ससद का नेता[उद्धरण चाहिए]

५- विदेश निती का निर्धारक

कार्यकारी सरकार

बहुमत समाप्त हो जाने के बाद जब मंत्रिपरिषद त्यागपत्र दे देती है तब कार्यकारी सरकार अस्तित्व में आती है अथवा प्रधानमंत्री की मृत्यु / त्यागपत्र की दशा में यह स्थिति आती है। यह सरकार अंतरिम प्रकृति की होती है। यह तब तक स्थापित रहती है जब तक नई मंत्रिपरिषद शपथ ना ले ले।[उद्धरण चाहिए] यह इसलिए काम करती है ताकि अनुच्छेद 74 के अनुरूप एक मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति की सहायता हेतु रहे। वी.एन.राव बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय ने माना था कि मंत्रिपरिषद सदैव मौजूद रहनी चाहिए। यदि यह अनुपस्थित हुई तो राष्ट्रपति अपने काम स्वंय करने लगेगा, जिससे सरकार का रूप बदल कर राष्ट्रपति हो जायेगा, जो कि संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ होगा। यह कार्यकारी सरकार कोई भी वित्तीय /नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती है क्योंकि उस समय लोक सभा मौजूद नहीं रहती है। वह केवल देश का दैनिक प्रशासन चलाती है। इस प्रकार की सरकार के सामने सबसे विकट स्थिति तब आ गयी थी जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत की सरकार को 1999 में कारगिल युद्ध का संचालन करना पड़ा था। किंतु विकट दशा में इस प्रकार की सरकार भी कोई भी नीतिगत निर्णय ले सकती है।

सुस्थापित परंपराए

एक संसदीय सरकार में ये पंरपराए ऐसी प्रथाएँ मानी जाती हैं जो सरकार के सभी अंगों पर वैधानिक रूप
से लागू मानी जाती हैं।[उद्धरण चाहिए] उनका वर्णन करने के लिये कोई विधान नहीं होता है ना ही संविधान में किसी देश के शासन के बारे में पूर्ण वर्णन किया जा सकता है। संविधान निर्माता भविष्य में होने वाले विकास तथा देश के शासन पर उनके प्रभाव का अनुमान नहीं लगा सकते। अतः वे उनके संबंध में संविधान में प्रावधान भी नहीं कर सकते हैं।
इस तरह संविधान एक जीवित शरीर तो है परंतु पूर्ण वर्णन नहीं है। इस वर्णन में बिना संशोधन लाये परिवर्तन भी नहीं हो सकता है। वही पंरपराए संविधान के प्रावधानों की तरह वैधानिक नहीं होती वे सरकार के संचालन में स्नेहक का कार्य करते हैं तथा सरकार का प्रभावी संचालन करने में सहायक हैं।
पंरपराए इस लिए पालित की जाती हैं क्योंकि उनके अभाव में राजनैतिक कठिनाइया आ सकती हैं। इसी कारण उन्हें संविधान का पूरक माना जाता है। ब्रिटेन में हम इनका सबसे विकसित तथा प्रभावशाली रूप देख सकते हैं।
इनके दो प्रकार हैं:-

  • प्रथम वे जो संसद तथा मंत्रिपरिषद के मध्य संयोजन का कार्य करती है यथा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर परिषद का त्यागपत्र दे देना।
  • द्वितीय वे जो विधायिका की कार्यवाहिय़ों से संबंधित है जैसे किसी बिल का तीन बार वाचन संसद के तीन सत्र राष्ट्रपति द्वारा धन बिल को स्वीकृति देना उपस्पीकर का चुनाव विपक्ष से करना जब स्पीकर सत्ता पक्ष से चुना गया हो आदि।

सरकार के संसदीय तथा राष्ट्रपति प्रकार

संसदीय शासन के समर्थन में तर्क
1. राष्ट्रपतीय शासन में राष्ट्रपति वास्तविक कार्य पालिका होता है जो जनता द्वारा निश्चित समय के लिये चुना जाता है वह विधायिका के प्रति उत्तरदायी भी नही होता है उसके मंत्री भी विधायिका के सदस्य नहीं होते है तथा उसी के प्रति उत्तरदायी होंगे न कि विधायिका के प्रति[उद्धरण चाहिए]
वही संसदीय शासन में शक्ति मन्त्री परिषद के पास होती है जो विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है

2. भारत की विविधता को देखते हुए संसदीय शासन ज्यादा उपयोगी है इस में देश के सभी वर्गों के लोग मन्त्री परिषद में लिये जा सकते है[उद्धरण चाहिए]

3. इस् शासन में संघर्ष होने [विधायिका तथा मन्त्री परिषद के मध्य] की संभावना कम रहती है क्यॉकि मंत्री विधायिका के सदस्य भी होते है[उद्धरण चाहिए]

4 भारत जैसे विविधता पूर्ण देश में सर्वमान्य रूप से राष्ट्रपति का चुनाव करना लगभग असंभव है[उद्धरण चाहिए]

5 मिंटे मार्ले सुधार 1909 के समय से ही संसदीय शासन से भारत के लोग परिचय रखते है।

इन्हें भी देखें

  1. "Independence Day 2023: आजादी के समय देश में कितने राज्य थे? जानिए कैसे बना था भारतीय गणराज्य". Amar Ujala. अभिगमन तिथि 2023-09-13.
  2. "भारत में पंचायती राज दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?". Jagranjosh.com. 2020-04-24. अभिगमन तिथि 2023-09-13.
  3. divyahimachal. "सबसे पहले पंचायती राज प्रणाली कहां लागू हुई?". Divya Himachal. अभिगमन तिथि 2023-09-13.