ललित नारायण मिश्र
ललित नारायण मिश्र (2 फरवरी 1923 – 3 जनवरी 1975) भारत के एक राजनेता थे जो 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री रहे। 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर बम-विस्फोट कांड में उनकी मृत्यु हो गयी थी।
आरम्भिक जीवन
[संपादित करें]श्री ललित नारायण मिश्रा का जन्म बसंत पंचमी को 1922 में बिहार के सुपौल जिले के बलुआ में हुआ था। उन्होंने 1948 में पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया। युवा मिश्रा ने राष्ट्रवादियों श्री कृष्ण सिन्हा और अनुग्रह नारायण सिन्हा को बहुत सम्मान दिया। उन्होंने कामेश्वरी देवी से शादी की और उनकी दो बेटियां और चार बेटे थे, जिनमें राजनेता विजय कुमार मिश्रा भी शामिल थे। श्री ललित नारायण मिश्रा के साला स्वर्गीय श्री दीनानाथ मिश्रा बनगांव के प्रथम इंजीनियर थे। जिनके बेटे स्वर्गीय श्री विद्यानाथ मिश्रा अंग्रेजी के प्रखंड विद्वान थे। श्री ललित नारायण मिश्रा, स्वर्गीय श्री दीनानाथ मिश्रा के काफी करीबी थे एवं उनकी बेटी इंदिरा मिश्रा व दामाद कृष्णानन्द मिश्रा व पौत्र सुधांशु मिश्रा आज भी अपने पूर्वजों की शान को अपने गांव जीवित रखे हुए हैं। जिसमें श्री ललित नारायण मिश्रा जी एवं स्वर्गीय श्री दीनानाथ मिश्रा जी की अहम भूमिका थी इस परिवार में। श्री मिश्रा जी को कोशी मेन के नाम से भी जाना जाता है। इनकी कर्मठता व अतुलनीय योगदान के कारण।
राजनैतिक जीवन
[संपादित करें]वह पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।
मैथिली भाषा से प्रेम
[संपादित करें]ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे 'साहित्य अकादमी' में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- http://164.100.24.209/newls/biodata_1_12/852.htm[मृत कड़ियाँ]
- https://web.archive.org/web/20090410225344/http://164.100.47.134/newls/underprocess.htm
- http://164.100.24.209/newls/biodata_1_12/3082.htm[मृत कड़ियाँ]
- https://web.archive.org/web/20081230184439/http://rajyasabha.nic.in/whoswho/previous_member/biograp_sketc_1d.htm#m
- https://web.archive.org/web/20050415164812/http://lnmu.bih.nic.in/
- https://web.archive.org/web/20110104013231/http://www.lnmipat.ac.in/home/index.htm
- https://web.archive.org/web/20110501030238/http://www.lnmcbm.org/
- http://www.indianrailways.gov.in/deptts/mpp/Instructions%20for%20medical.pdf
- http://www.a4eindia.com/RVE6586494cc81f48d2ab7cbb6c8b9a180e[मृत कड़ियाँ], .aspx
- https://web.archive.org/web/20100414025514/http://www.rediff.com/money/2004/may/22spec.htm