पर्ल एस बक

पर्ल एस बक
पर्ल एस बक, 1972
जन्मपर्ल सीडेनस्ट्राइकर
26 जून 1892
हिल्सबोरो, वेस्ट वर्जिनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका
मौतमार्च 6, 1973(1973-03-06) (उम्र 80 वर्ष)
डैन्बी, वरमोन्ट, संयुक्त राज्य अमेरिका UNITED STATES OF AMERICA
पेशालेखिका, शिक्षक
राष्ट्रीयताअमेरिकन
विषयअंगरेजी
खिताबपुलित्ज़र प्राइज़, 1932, नोबेल प्राइज़, 1938
जीवनसाथीजॉन लॉसिंग बक (1917–1935)
रिचर्ड जे वाल्स (1935–1960)

हस्ताक्षर

पर्ल एस बक (जून 26, 1892 – मार्च 6, 1973) एक अमेरिकी लेखिका और उपन्यासकार थीं। बक एक मिशनरी की बेटी थीं और उन्होंने अपने पिता के साथ और उनके देहान्त के बाद भी जिंदगी का लंबा हिस्सा चीन के झेनझियांग में बिताया। चीन की समाजिक पृष्ठभूमि पर लिखा उनका उपन्यास द गुड अर्थ अमेरिका में 1931 और 1932 के बीच बेस्टसेलर रहा और इस उपन्यास को 1932 में पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी उपन्यास के लिए 1938 में उन्हें नोबल पुरस्कार और रमन मैगेसैस से सम्मानित किया गया।[1]

जीवन परिचय

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पर्ल का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट वर्जिनिया राज्य के हिल्सबोरो शहर में हुआ था। पर्ल के माता-पिता ईसाई धर्म के प्रचारक थे और चीन में सेवारत थे। पर्ल के जन्म के समय ये दंपति अमेरिका चला आया लेकिन जब पर्ल पांच महीने की थी तब दोनो दोबारा चीन पहुंच गए। पर्ल ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि किस प्रकार चीन में रहते हुए भी उसे दो संस्कृतियों के साथ सामन्जस्य बिठाना पड़ा। एक तरफ अमेरिकी और यूरोपिय संस्कृति का उनका खुद का परिवार और दूसरी ओर स्थानीय चीन के लोग। दोनों संस्कृतियों में उन दिनों कोई संवाद नहीं था। बॉक्सर विद्रोह के बाद तो हालात और गंभीर हो गए। चीनी दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया और पश्चिमी दोस्तों ने घर पर आना जाना। इस दौरान पर्ल और परिवार के बाकी सदस्यों को सुरक्षा की दृष्टि से उनके पिता ने शंघाई भेज दिया जहां एक मिशनरी स्कूल में पर्ल की शुरुआती शिक्षा पूरी हुई। पर्ल को उनकी मांं ने अंग्रेजी भाषा और साहित्य पढ़ाया जबकि चीनी भाषा और साहित्य को पढ़ाने के लिए एक चीनी अध्येता को ट्यूटर के रूप में रखा गया।[2][3]

आगे की पढ़ाई के लिए पर्ल अमेरिका आ गईं, जहां वर्जिनिया के लिंचबर्ग में उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की। इसके बाद 1914 से 1932 के बीच चीन में मिशनरी के रूप में काम किया।

चीन में लेखन कार्य

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अमेरिका में अपना अध्ययन पूरा करने के बाद पर्ल चीन वापस लौट आईं। जहां उन्होंने कृषि अर्थशास्त्री जॉन लॉसिंग बक से विवाह कर लिया। पर्ल अपने पति के साथ 1920 से 1933 के बीच चीन के नानजिंग में नानजिंग विश्वविद्यालय में रहीं। नानजिंग विश्वविद्यालय में पर्ल ने अंग्रेजी साहित्य में अध्यापन कार्य किया। नानजिंग में रहते हुए पर्ल ने चीन के उथल-पुथल का दौर देखा। एक ओर विदेशी होने के नाते उनके जीवन पर संकट था तो वहीं स्थानीय चीनी लोगों ने संकट के समय में उन्हें सहायता और शरण देकर उनकी जान भी बचाई। पर्ल ने इस दौरान अपने प्रसिद्ध उपन्यास द गुड अर्थ की रचना की।

अमेरिका में लेखन कार्य

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पर्ल 1935 में वापरस अमेरिका लौट आईं। हालांकि पर्ल ने अपने उपन्यास में चीनी कृषक समाज यथार्थवदी चित्रण किया था लेकिन चीन में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में हुई सास्कृतिक क्रांति के दौरान पर्ल को अमेरिकी सांस्कृतिक साम्राज्यवादी घोषित कर दिया गया। पर्ल को उस समय अपार दु:ख हुआ जब 1972 में अमेरिका राष्ट्रपति निक्सन के साथ उन्हें चीन की यात्रा पर जाने की इजाजत नहीं मिली। पर्ल 1935 में अमेरिका लौटने के बाद भी लगातार चीन वापस लौटने के लिए छटपटाती रहीं लेकिन उनकी वापसी पर चीन की सरकार ने पाबंदी लगा दी और दिल पत्थर रखकर पर्ल को आजीवन अमेरिका में ही रहना पड़ा। अमेरिका में ही 6 मार्च 1973 को उनका निधन हो गया। अमेरिका में अपने जीवन के आखिरी दिनों में उन्होंने चीन की कम्यूनिस्ट तानाशाही पर उपन्यास सेटन नेवर स्लीप लिखा।

सन् 1932 में द गुड अर्थ के प्रकाशन के समय पर्ल एस बक
  • ईस्ट वाइंड वेस्ट वाइंड, 1930
  • द हाउस ऑफ अर्थ, 1930
  • द गुड अर्थ, 1931
  • सन्स। 1933
  • द हाउस डिवाइडेड, 1935
  • द मदर, 1933
  • चाइना स्काई, 1941
  • ड्रैगन सीड, 1942
  • इंपीरियल वुमन, 1956
  • लेटर फ्राम पेकिंग, 1957
  • सेटन नेवर स्लीप्स, 1962

सन्दर्भ

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  1. The Nobel Prize in Literature 1938 Archived 2018-03-05 at the वेबैक मशीन Accessed 1 अगस्त 2017
  2. Shavit, David (1990), The United States in Asia: a historical dictionary, Greenwood Publishing Group, पृ॰ 480, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-313-26788-X, मूल से 16 अप्रैल 2016 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 1 अगस्त 2017 (Entry for "Sydenstricker, Absalom")
  3. Peter Conn, Pearl S. Buck: A Cultural Biography, Cambridge: Cambridge UP, 1996) 9, 19–23 ISBN|0521560802.